रंपत कैसे करते हैं दोहरे अर्थों वाली कॉमिडी?
रंपत के साथ कौन-सी महिलाएं मंच पर करती हैं कॉमिडी?
रंपत के नाम में कैसे जुड़ी गाली?
रम्पत करीब 40 साल से पूरे देश में नौटंकी के मंच पर डबल मीनिंग कॉमेडी कर रहे थे। उनके शो में दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ती थी। वह अपने काम से खुश थे। कहते थे यह कला है। हम मंच पर वही बोलते जो समाज चाहता है।
रम्पत नौटंकी करते थे और नौटंकी आई स्वांग से। स्वांग का व्यावसायिक रूप। कानपुर इसका बड़ा केंद्र रहा है। नौटंकी की दुनिया में श्रीकृष्ण पहलवान, लालमन और गुलाब बाई जैसे बड़े कलाकार हुए। लेकिन ऐसा वक़्त भी आया जब बदलते दौर के साथ कदमताल करना नौटंकी कलाकारों के लिए मुश्किल हो रहा था। इस बदलाव के बीच ही अस्सी के दशक में उभरे रम्पत।
उनकी कहानी दिलचस्प हैं। रम्पत के अनुसार मेरे पापा पुलिसवाले थे। मैंने आठवीं क्लास तक पढ़ाई की। घर का माहौल काफी सख्त था लेकिन मुझे बचपन से ही नौटंकी की धुन सवार थी। 13-14 साल की उम्र में जहां कहीं भी नौटंकी होती, वहां पैदल चला जाता। वो दौर ऐसा था, जब अक्सर नौटंकी के शो होते। मेरा मन नाचने-गाने में भी लगता था। नौटंकी से प्रेम बढ़ रहा था। एक दिन तय कर लिया कि ज़िंदगी नौटंकी में ही गुज़रेगी। परिवार को पता चला तो विरोध हुआ। पिता ने घर से निकाल दिया, लेकिन इरादे बुलंद रहे। इस बीच नौटंकी कलाकार कृष्णा बाई से मुलाक़ात हुई। उनसे इस कला के कई गुर सीखे। उस समय दो मतलब वाली कॉमिडी की दुनिया में दादा कोंडके का नाम हर ज़ुबान पर था। रम्पत सिंह भदौरिया को दादा कोंडके का अंदाज़ भा गया। दादा के कई कैसेट सुनने और देखने के बाद रम्पत ने तय किया कि वह भी दो अर्थों वाली कॉमिडी करेंगे। ऐसा नहीं है कि द्विअर्थी कॉमिडी रम्पत ने ही करनी शुरू की। इसके पहले भी बड़े पैमाने पर फूहड़ और अश्लील कॉमिडी नौटंकी का हिस्सा थी, जिसे लोग खूब पसंद करते। 1983 में रम्पत ने नौटंकी के स्टेज पर पहली बार डबल मीनिंग कॉमिडी की। साथ में थीं महिला कलाकार शायरा बानो। शायरा को रम्पत बहन मानते थे। लेकिन मंच पर चढ़ने से पहले वह झिझक गए। शायरा पूरा माजरा समझ चुकी थीं। शायरा ने रम्पत से कहा स्टेज पर कोई रिश्ता नहीं होता। हम वहां सिर्फ कलाकार होते हैं। अपने इस पहले डबल मीनिंग शो के बाद रम्पत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह दो अर्थों वाली कॉमेडी से लोगों का मनोरंजन करते रहे। पूरे देश में उनकी लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ती रही। कैरियर सेट हो रहा था कि रम्पत ने नौटंकी सिंगर रानीबाला से लव-मैरिज कर ली। रानी बाला को भी मंच पर रम्पत के साथ डबल मीनिंग कॉमिडी करने में कोई झिझक नहीं हुई। यह उस दौर की बात है, जब टीवी की पहुंच बेहद सीमित थी और महिलाओं पर समाज ने कई तरह की बंदिशें थोप रखी थीं। स्टेज पर हज़ारों दर्शकों के सामने रम्पत और रानी बाला के बीच दोहरे अर्थों में बात होती। रम्पत मज़ाक़ करते थे और रानीबाला तेज़ आवाज़ में उस बात का जवाब देती थीं लेकिन अभी तक रम्पत केवल रम्पत ही थे। उनके नाम से हरामी शब्द जुड़ना बाकी था। प्रयागराज में करीब 30 साल पहले नौटंकी कलाकारों की एक प्रतियोगिता हुई। स्टेज पर आने वाले हर कलाकार की दर्शक खूब खिंचाई कर रहे थे। कुमार साहब अनाउंसर थे।उन्होंने कहा तमाम हरामियों के बाद अब रम्पत हरामी आ रहे हैं। खूब तालियां बजीं।रम्पत और रानीबाला इस दौरान साथ थे। रम्पत- मुझे हरामी शब्द बुरा लगा लेकिन देखते ही देखते मैं रम्पत हरामी के नाम से पहचाना जाने लगा। मेरी कामयाबी में हरामी शब्द का सौ फ़ीसदी योगदान है।' रम्पत की शोहरत बढ़ती गई। नब्बे और दो हज़ार के दशक में उनका जादू सिर चढ़कर बोलने लगा। इस दौर में समाज का एक वर्ग दोहरे अर्थों वाली कॉमिडी से परहेज़ करता था। लेकिन कुछ लोग इसे गुपचुप देखते और ख़ूब पसंद करते। रम्पत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, बंगाल, बिहार, असम और महाराष्ट्र समेत पूरे देश में कॉमिडी करने लगे।
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